Sunday, November 11, 2018

बन्नो बुआ

हमारी बन्नो बुआ थी कुछ हट के! बिलकुल स्टाइलिश. हर चीज़ में एकदम अप -टू-डेट, फिर चाहे वो लेटेस्ट गॉसिप हो, फ़िल्मी ज्ञान, फ़ैशन या फिर बातें. बुआ जैसी पूरे मोहल्ले में कोई और नहीं थी, वो थी ही इतनी निराली! इधर- उधर गप्पें हाँक कर समय बर्बाद करना उनकी विशेष हॉबी थी, जिसकी वजह से वो अक्सर दादी से ख़ूब डाँट खाती.” कम्बख़्त सारे समय सहेलियों के साथ बातें करती रहती है, घर के काम क्या ख़ाक सीखेगी. आने दो घर आज उसकी टाँगे तोड़ूँगी!” हमें बहुत मज़ा आता जब बुआ को डाँट पड़ती थी. वो मज़ा हमें महंगा बहुत पड़ता और ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ता! डाँट खाने के बाद बुआ दनदनाती हुई कमरे में आती और आते ही आवाज़ लगाती,“ पिंटू मेरे लिए एक ग्लास ठंडा पानी तो ला और फिर आ कर मेरा सिर दबाना. कुछ काम नहीं करता तू आजकल, निकम्मा कहीं का!
 हैं, ये क्या? दादी का ग़ुस्सा मेरे ऊपर!
बन्नो बुआ के मिज़ाज ही निराले थे- उनके कमरे में सिंगार मेज़ के ऊपर तरह - तरह का समान रखा रहता था. पांड्ज़ टैल्कम पाउडर, अफ़ग़ान स्नो, पर्फ़्यूम, चूड़ियों का डिब्बा, रंग- बिरंगी काँच के बोतलें, मेकअप का समान और ना जाने क्या -क्या.हमें टेबल के पास जाना बिलकुल भी अलाउड नहीं था. उसके आस-पास तो हम पर भी नहीं मार सकते थे. 
वो बुआ की फ़ेवरेट जगह थी और हमारे लिए नो एंट्री ज़ोन! कभी- कभी जान जोखिम में डाल, अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए और इतने सारी इंट्रेस्टिंग वस्तुओं को देखने के लिए ग़लती से कभी उधर कूच भी कर जाते तो बुआ की ऐसी फटकार पड़ती की क्या बताऊँ. बुआ के कमरे के बुक शेल्फ़ में किताबें कम और फ़िल्मी मैगज़ीन ज़्यादा दिखती थी, जो वो अपनी सहेलियों के साथ अक्सर इक्स्चेंज भी करती. दादी की नज़रे बचा बुआ कभी- कभी अंग्रेज़ी के रोमांटिक नॉवल यानी “ मिल्ज़ एंड बून” भी पढ़ती थी.उनको वो ब्राउन काग़ज़ चढ़ा के रखती थी ताकि सबको लगे की वो अपने कोर्स की किताबें पढ़ रही हैं.
पर कहते है ना झूठ के पैर नहीं होते! एक दिन जब बुआ अपनी सहेलियों के साथ बाहर गयी हुई थी दादी ने डिसाइड किया कि बुआ के कमरे की स्प्रिंग क्लीनिंग होनी चाहिये. फिर क्या था एक- एक चीज़ निकाल कर सफ़ाई हुई। धूल-धूसरित किताबें को तो जैसे ऑक्सिजन मिल गया हो, चप्पल, सैंडल और जूतियाँ को भी ताज़ी हवा नसीब हो गयी. कमरे की सारी चीज़ें दादी को थैंक यू बोल रही थी मानो! तभी दादी की तेज़ नज़र पड़ी ब्राउन पेपर चढ़ी किताबों पर. तुरंत बोली,” ऐ कमला पकड़ा तो किताबें, ज़रा देखूँ कॉलेज में क्या पढ़ रहें हैं आजकल .”
पहली किताब आते ही दादी के चेहरे का रंग ही बदल गया, फिर दूसरी ने इक्स्प्रेशन बदल दिया और देखते ही देखते दादी ग़ुस्से से आग- बबूला हो गयी.” आने दो घर बन्नो को, आज ऐसी धुलाई करूँगी याद रखेगी.यही सब पढ़ाते है कॉलेज में। कल से कोई ज़रूरत नहीं है कॉलेज जाने की !”
शाम को जब बन्नो बुआ घर पर आयी तो डाँट के बदल ऐसे गरजे और बरसे की उसके बाद बुआ ने किताबों पर कवर चढ़ना ही छोड़ दिया और बुआ की 'मिल्ज़ एंड बून' वन्स इन आ ब्लू मून हो गयी!

Wednesday, November 7, 2018

कवर स्टोरी

स्कूल और घर में कोई ना कोई हंगामा लगा ही रहता था- बिलकुल ऐक्शन फ़िल्मों की तरह. मज़ा तो उस दिन आया जिस दिन बंटू उसको ले कर आया.आप सोच नहीं सकते कितना हंगामा मच गया था पूरी क्लास में! सब बच्चे उस की एक झलक देखना चाहते थे. सब लोगों में खुसर- पुसर हो रही थी, लड़कियों में गुपचुप बातें हो रही थी और माहौल कुछ अलग ही लग रहा था. तभी कोई आवाज़ आयी, “आज आने दो शर्मा मैडम को इस बंटू की शिकायत करेंगे, ऐसी चीज़ें कोई स्कूल में लाता है ?” पीछे पलट कर देखा तो बबली अपनी सहलियों से कह रही थी. अरे भाई ऐसा क्या भूकम्प आ गया इस मरियल क्लास में, जो सब उछल रहे थे!
मेरी और जग्गू की समझ से बिलकुल परे था ये हंगामा. भई, हम तो बंटू की लीग में आते ही नहीं थे- कहाँ वो और कहाँ हम! वो तो हमेशा नई- नई चीज़ें लाता था जो उसके लिए उसकी लंदन वाली मौसी और कनाडा वाले मामा भेजा करते थे. जानते हैं, वो भी फ़ोरेन कंट्री घूम कर आया था पिछले साल! उसके पिताजी उसे नेपाल ले गए थे और एक हमारे है, जिनसे हमारी बात करने की हिम्मत ही नहीं होती.हमारे सरसों के तेल से चमकाए बालों की महक की वजह से लड़कियाँ क्या लड़के भी एक हाथ का फ़ासला बनाए रखते हैं हमसे. कितनी बार माँ को समझाया पर हमारी बात की तो कोई अहमियत ही नहीं है. चलिए जाने दीजिए, लौटते हैं बंटू के कांड पर...
हमने बहुत बारी उसके डेस्क तक जाने की कोशिश की पर हमारे हाथ सिर्फ़ नाकामी ही लगी. क्लास में बंटू अपने चेलों के साथ घिरा बैठा रहा और हम ये सोचते रहे के कैसे जा कर देखे की वो क्या लाया है. उसके ग्रूप के बच्चे ख़ूब मज़े से उसके साथ बैठ कर देख रहे थे. हम जैसे- तैसे हिम्मत करके उसके डेस्क पर पहुँच गए और हमारी नज़र जैसे ही उस पर पड़ी तो हम भौंचके रह गए. “ अबे यह क्या ले आया? तेरी तो आज ख़ूब धुलाई होगी!”, मैंने उसे बोला. उसके पास थी प्लेबॉय मैगज़ीन, जिसमें लड़कियों के अश्लील तस्वीरें होती है! 
सच जानिये हमारे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी और बंटू की हिम्मत देखिए की वो ऐसी मैगज़ीन स्कूल ले आया. कितना दबंग! हमारे लिए तो वो कुछ टाइम के लिए रोल मॉडल ही बन गया था. 
आज से पहले किसी ने इतनी हिम्मत नहीं करी थी. हमें तो कवर की एक झलक ही मिली. इससे पहले हम आगे बढ़ कुछ और देख पाते ठाकुर सर ने क्लास में एंट्री मार दी. हम रिवर्स गीयर में पीछे हो लिए और चुगलख़ोर लड़कियाँ फ़ुल स्पीड में सर के पास!
फिर आगे की क्या कहूँ, भयानक नज़ारा था! सर डाइव मार कर बंटू के डेस्क पर और इस से पहले वो मैगज़ीन को  छिपा पता, मैगज़ीन सर के हाथ में. फिर क्या था, दे-दना-दन-दे! उसकी ऐसे धुलाई हुई की वो और उसका चेहरा किसी मैगज़ीन के कवर पेज पर क्या अंदर के पेज में भी छपने के लायक ना रहा.

Saturday, November 3, 2018

गाथा गुसलखाने की

हम गुसलखाने में घुसे नहीं, दादी का प्रोग्राम तुरंत चालू हो जाता था।“ ओ, पिंटू अंदर जा के ब्याह मत जाइयो, फटफट नहा कर आना!” अब दादी को कैसे समझाते की सर्दी के मौसम में गरम पानी से स्नान करने का मज़ा कुछ अलग ही होता है। गरम पानी से निकलती हुई स्टीम हमारे मकड़ी के जाले से सजे और  धूल धूसरित गुसलखाने को थोड़ा- थोड़ा स्टीम रूम बना देती! वही कोने में लकड़ी के त्रिकोण पर रखा सरसो का तेल,संसिलक शैम्पू, हमाम साबुन, नयसिल पाउडर और पापा का शेविंग का सामान हमारे कारनामों के मूक दर्शक होते। हम भी पूरी प्लानिंग के साथ अंदर जाते।अब अंदर जाएँगे और थोड़ा बहुत वक़्त भी लगाएँगे और अपनी बेसुरी आवाज़ में मोहम्मद रफ़ी साहब या फिर किशोर दा के नग़मे भी गाएँगे।
हमारी ख़ुशी से कोई ख़ुश नहीं होता था.बन्नो बुआ को तो मौक़ा चाहिए होता था हमें दादी से डाँट पड़वाने का. जैसे ही तौलिया ले कर आता वैसे ही बन्नो बुआ शुरू हो जाती, “ पिंटू अंदर जा कर बैठ मत जाना जल्दी- जल्दी करना, मुझे बबिता के साथ बाज़ार जाना है.” छाछ बोले तो बोले, छलनी भी! पर हम कौन से सुनने वालों में से थे, बात सुनी भी और नहीं भी।
बाहर आँगन में बड़ी ऐल्यूमिनीयम के जम्बो पतिले में पानी गरम होता और वहाँ दादी की हिदायतों की लिस्ट लम्बी होती। ये तो नॉट हैपनिंग था, पर क्या करे दादी से पंगे लेना बेहद ख़तरनाक काम था। कितनी बार मन होता की दादी को बोल दे की ये पानी है राशन नहीं, पर अब जो मिल जाए उसमें ही संतुष्ट होने की भरपूर कोशिश  करते।
लेकिन, गुसलखाने में अंदर जाकर वो ऊधम उतारते की घरवाले परेशान हो जाते।अब यही तो वो जगह थी जहाँ हम अपनी मनमानी कर सकते थे।दादी की कंजूसी की वजह से हम काफ़ी क्रीएटिव हो गए थे और एक बालटी गरम पानी को दो में कैसे बदला जाता है वो हमें अच्छे से आता था! कभी- कभी तो एक का ढाई भी कर लेते थे!
अभी पानी की ठीक से जाँच -पड़ताल भी नहीं करी होती, इतने में आवाज़ें आनी शुरू हो जाती। “ ज़्यादा देर गरम पानी से अपना शरीर मत सेंकना काला हो जाएगा, कोई छोरी ना ब्याह करेगी तुझ से!” इक्स्क्यूज़ मी दादी, मैं कोई डबल रोटी का स्लाइस नहीं हूँ, जो ज़्यादा टोस्ट हो जाएगा और शादी उसके लिए बहुत छोटा। ये बातें दादी को बोलने की हिम्मत नहीं होती और सब दिल के एक कोने में रह जाती।
चाहे दादी आवाज़ें लगती या माँ प्यार से पुकारती, गुसलखाने में जा कर तो अपनी मस्ती चालू हो जाती।अच्छे से गरम पानी से अपनी सिकाई करके जब बाहर आता तो दादी की डाँट, बुआ की फटकार, माँ की मार और पिताजी की पिटाई मेरा इंतज़ार कर रही होती!
आज गरम पानी अन्लिमटेड है पर बचपन का वो बेफ़िक्री वाला टाइम नहीं है।

तेल का तमाशा

चोटियों को माँ इतना कस कर बांधती थी मानो उनकी मदद से मैंने पहाड़ चढ़ने हो- तेल से चमकती और महकती हुई इन चोटियों को काले रिबन से सजाया जाता औ...