Wednesday, March 11, 2020

स्याही की चाल

कोई भी नई टाइप की बदमाशी हो और हम सब उसमें शामिल ना हो ऐसा तो इम्पॉसिबल था! यह तो शायद हमारी जन्मकुंडली में भी नहीं लिखा था।अज़ी, हम थे ही कुछ अलग टाइप के, सब से हट के। घर हो या स्कूल हमारी बदमाशियाँ हम से दो क़दम आगे चलती थी और फिर फटकार मिले या मार हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। चलिए, एक मज़ेदार क़िस्सा सुनता हूँ - हुआ यूँ की हम सब क्लास में पहुँचे तो पता चला की क्लास टीचर नहीं आएँगी और मिस शर्मा रेप्लेस्मेंट टीचर होंगी।इतना सुनना था की सब बच्चे शोर मचाने लगे- अब पाँच ख़ाली पिरीयड जाते देख किसे दुःख नहीं पहुँचता।हमने तो कितने सुंदर -सुंदर सपने सज़ा लिए थे अपना समय काटने के लिए।रज्जू का रूबिक क्यूब, पिंटू की अमर चित्र कथा, बबलू का वॉकमैन, शोंटू के फ़ैंटम, फ़्लश गॉर्डन के कॉमिक्स और कितनी चीज़ें हम सब ट्राई करना चाहते थे।और सच जानिए उसके लिए आज का दिन बिलकुल पर्फ़ेक्ट था! शायद हम मासूमों की ख़ुशी से किसी को इतनी ज़्यादा जलन हो गयी की मिस शर्मा को भेज दिया।"अबे, हम कॉमिक्स कैसे पढ़ेंगे और रूबिक क्यूब, उसका क्या बे!" पीछे से मोंटू फुसफुसाया। दिल में आया की उसको एक उलटे हाथ का दूँ, पर मिस शर्मा की पैनी निगाहों से बचना नामुमकिन ही नहीं बेहद मुश्किल भी था।
"खड़े हो जाओ कुर्सी पर, माँ - बाप के पैसे बर्बाद करवाते शर्म नहीं आती।क्या यही सब करने आते हो स्कूल में?" पीछे पलट कर देखा तो बेचारा बिल्लू फिल्मफेअर पढ़ते हुए पकड़ा गया था और उसकी कहानी किसी फ़िल्म से कम नहीं लग रही थी! वो गर्दन झुकाए नान-स्टॉप डाँट की बारिश में भीगा जा रहा था और उसको बचाने वाले प्रभु जी शायद अपनी लंच ब्रेक पर गए थे। क्लास में तनाव बढ़ता जा रहा था और हमारी बोरियत भी! पाँच पिरीयड हम कैसे काटेंगे ये हमारी समझ के बाहर था और फिर पानी में रह कर मगर से भी तो नहीं बैर कर सकते थे। कैसे छुटकारा पायें इस मुसीबत से सबके दिमाग़ में यही एक सवाल था। चलो, फ़ोर ऐ चेंज हम सब यूनाइटेड थे इस मामले में! तभी दीपू के पेन को देख एक मस्त ख़याल आ आया - जो मिस शर्मा की गाड़ी को हमारी कक्षा के स्टेशन से रवाना करवाएगा और हमारा उद्धार भी करेगा। मैंने बबलू और बिट्टू को अपना प्लान बताया और चल पड़ा सिर पर कफ़न बाँध मिस शर्मा की मेज़ की तरफ़- दिल तो ऐसे धड़क रहा था मानो आज ही पूरे जीवन की कसर पूरी कर लेगा! मिस शर्मा ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिख रही थी और मैं उनके पीछे। मैंने पेन झटक कर जैसे ही स्याही उनकी साड़ी पर डाली तो मेरे साथ एक भयानक धोखा हो गया। स्याही ने चाल बदल डाली - अब वो साड़ी की बजाए मिस शर्मा के मुँह की रौनक़ बढ़ा रही थी और मेरा चेहरा फीका पड़ गया था। क्लास में एकदम सन्नाटा छा गया- क्या होगा कोई नहीं जानता था। मैं और मेरी तन्हाई अपने आने वाले काले कल के बारे में कुछ विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि अचानक से एक झनाटेदार झापड ने मुझे मेरी तन्हाई से जुदा कर दिया। फिर क्या, मुझे एक की बजाए कई -कई मिस शर्मा दिखायी देने लगीं! 
उसके बाद जो मेरे साथ हुआ, उसका विवरण ना देना ही बेहतर होगा। ये जान लीजिए की स्याही की टेढ़ी चाल ने मेरी चाल सीधी कर दी !

Wednesday, March 4, 2020

रंग-बिरंगी कहानी

अब बन्नो बुआ का नैशनल पास टाइम था हम बच्चों को डाँटना और वो कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ती थी हमें डाँट की घुट्टी पिलाने का, चाहे हमें ज़रूरत हो या ना हो! “ कितनी बार बोला है मेरे कमरे में रखी चीज़ों को मत छेड़ा करो, पर बहुत ढीठ हो तुम सब, कहना ही नहीं मानते.” बाई दी वे, बन्नो बुआ के कमरे में सबसे इक्साइटिंग चीज़ें रखीं होती थी और सब हमें अपनी तरफ़ आकर्षित करती है रहतीं! वो सिंगार मेज़ पर रखीं तरह -तरह की रंगीन काँच की बोत्तलें, कुछ छोटी, कुछ बड़ी और वो गोल डिब्बियाँ जिन पर सुंदर -सुंदर फूलों की,पहाड़ों की फ़ोटो चिपकी होती- ना जाने इनके क्या जादू भरा हुआ था की इनमें से कुछ लगाते ही हमारी बुआ एक दम ईस्ट्मन कलर वाली फ़िल्मों की हीरोइन की तरह लगने लगती। सिंगार मेज़ के शीशे की दोनों तरफ़ लटकती,झूलती हुई रंग- बिरंगे रेशमी धागों वाली काली-काली चोटियाँ जो बुआ की ज़ुल्फ़ों को अपना टोटल सपोर्ट दे कर उन्हें और लम्बा बना देतीं थी।बुआ अपने सलवार क़मीज़ से मैच करती हुई रेशमी धागों वाली चोटी लगा कर जब घर से बाहर निकलती तो सच जानिए बेहद सुंदर दिखती थी, बिलकुल मीना कुमारी, मधुबाला टाइप्स! हमारे मुँह से बुआ की तारीफ़ सुन कर आप आश्चर्य चकित रह गए ना, हम भी। 
मैं आपको एक बहुत मज़ेदार वाक़या सुनाता हूँ, हुआ यूँ की गरमियों की छुट्टियाँ चल रही थी और दोपहर में हमें बाहर खेलने की बिलकुल इजाज़त नहीं थी। जैसे ही बाहर निकलते वैसे ही दादी के प्रवचन शुरू हो जाते , "कंबख़्तों, लू लग जाएगी, चलो अंदर चल कर खेलो!। नासपीटे सुनते ही नहीं! सारे -सारे दिन ऊधम मचाते रहते हैं!" बाहर खेले तो मुश्किल, अंदर खेले तो उससे भी ज़्यादा मुश्किल। हमारे लिए तो इधर कुआँ और उधर खाई! अब अंदर तो आ गए पर करे क्या कुछ समझ नहीं आ रहा था। लूडू, ताश, साँप-सीढ़ी, कैरम खेल-खेल कर हम बहुत बोर हो गए थे और कोई  नया खेल भी सूझ नहीं रहा था। कभी इस कमरे में तो कभी उस कमरे और फिर वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था- हमने सीधा लैंड करा बन्नो बुआ के कमरे में! बुआ और माँ किसी काम से बाहर गयी हुई थी और हमारे लिए यह बदमाशी करने का  गोल्डन अवसर था। इस समय हम किसी दंगाई लंगूरों की टोली से कम नहीं थे- सिंगार मेज़ पर रखी सभी रंग- बिरंगी बोतलों का रसायनिक निरीक्षण- परीक्षण शुरू कर दिया, 'अब हर घर कुछ कहता है', इसी बात को समझते हुए बुआ की कमरे की फीकी दीवारों को ऐशीयन पैंट्स की बजाए लिप्स्टिक के रंगों से निखार दिया। शायद, बुआ का कमरा हमें थैंक यू कहेगा और बुआ भी! हमने खेलने के लिए बुआ की रंगीली चोटियाँ ली और चार- पाँच को जोड़ रस्सी बना कर जैसे ही पहला खिलाड़ी रेडी हुआ, तैसे ही बुआ प्रकट हो गयी - साक्षात महिशासुर मर्दिनी की तरह! बस उसके बाद जो दानव संहार हुआ - हम बच्चे आज तक नहीं भूल पाए हैं!

तेल का तमाशा

चोटियों को माँ इतना कस कर बांधती थी मानो उनकी मदद से मैंने पहाड़ चढ़ने हो- तेल से चमकती और महकती हुई इन चोटियों को काले रिबन से सजाया जाता औ...