Wednesday, March 4, 2020

रंग-बिरंगी कहानी

अब बन्नो बुआ का नैशनल पास टाइम था हम बच्चों को डाँटना और वो कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ती थी हमें डाँट की घुट्टी पिलाने का, चाहे हमें ज़रूरत हो या ना हो! “ कितनी बार बोला है मेरे कमरे में रखी चीज़ों को मत छेड़ा करो, पर बहुत ढीठ हो तुम सब, कहना ही नहीं मानते.” बाई दी वे, बन्नो बुआ के कमरे में सबसे इक्साइटिंग चीज़ें रखीं होती थी और सब हमें अपनी तरफ़ आकर्षित करती है रहतीं! वो सिंगार मेज़ पर रखीं तरह -तरह की रंगीन काँच की बोत्तलें, कुछ छोटी, कुछ बड़ी और वो गोल डिब्बियाँ जिन पर सुंदर -सुंदर फूलों की,पहाड़ों की फ़ोटो चिपकी होती- ना जाने इनके क्या जादू भरा हुआ था की इनमें से कुछ लगाते ही हमारी बुआ एक दम ईस्ट्मन कलर वाली फ़िल्मों की हीरोइन की तरह लगने लगती। सिंगार मेज़ के शीशे की दोनों तरफ़ लटकती,झूलती हुई रंग- बिरंगे रेशमी धागों वाली काली-काली चोटियाँ जो बुआ की ज़ुल्फ़ों को अपना टोटल सपोर्ट दे कर उन्हें और लम्बा बना देतीं थी।बुआ अपने सलवार क़मीज़ से मैच करती हुई रेशमी धागों वाली चोटी लगा कर जब घर से बाहर निकलती तो सच जानिए बेहद सुंदर दिखती थी, बिलकुल मीना कुमारी, मधुबाला टाइप्स! हमारे मुँह से बुआ की तारीफ़ सुन कर आप आश्चर्य चकित रह गए ना, हम भी। 
मैं आपको एक बहुत मज़ेदार वाक़या सुनाता हूँ, हुआ यूँ की गरमियों की छुट्टियाँ चल रही थी और दोपहर में हमें बाहर खेलने की बिलकुल इजाज़त नहीं थी। जैसे ही बाहर निकलते वैसे ही दादी के प्रवचन शुरू हो जाते , "कंबख़्तों, लू लग जाएगी, चलो अंदर चल कर खेलो!। नासपीटे सुनते ही नहीं! सारे -सारे दिन ऊधम मचाते रहते हैं!" बाहर खेले तो मुश्किल, अंदर खेले तो उससे भी ज़्यादा मुश्किल। हमारे लिए तो इधर कुआँ और उधर खाई! अब अंदर तो आ गए पर करे क्या कुछ समझ नहीं आ रहा था। लूडू, ताश, साँप-सीढ़ी, कैरम खेल-खेल कर हम बहुत बोर हो गए थे और कोई  नया खेल भी सूझ नहीं रहा था। कभी इस कमरे में तो कभी उस कमरे और फिर वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था- हमने सीधा लैंड करा बन्नो बुआ के कमरे में! बुआ और माँ किसी काम से बाहर गयी हुई थी और हमारे लिए यह बदमाशी करने का  गोल्डन अवसर था। इस समय हम किसी दंगाई लंगूरों की टोली से कम नहीं थे- सिंगार मेज़ पर रखी सभी रंग- बिरंगी बोतलों का रसायनिक निरीक्षण- परीक्षण शुरू कर दिया, 'अब हर घर कुछ कहता है', इसी बात को समझते हुए बुआ की कमरे की फीकी दीवारों को ऐशीयन पैंट्स की बजाए लिप्स्टिक के रंगों से निखार दिया। शायद, बुआ का कमरा हमें थैंक यू कहेगा और बुआ भी! हमने खेलने के लिए बुआ की रंगीली चोटियाँ ली और चार- पाँच को जोड़ रस्सी बना कर जैसे ही पहला खिलाड़ी रेडी हुआ, तैसे ही बुआ प्रकट हो गयी - साक्षात महिशासुर मर्दिनी की तरह! बस उसके बाद जो दानव संहार हुआ - हम बच्चे आज तक नहीं भूल पाए हैं!

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