हमारी
बन्नो बुआ थी कुछ हट के! बिलकुल स्टाइलिश. हर चीज़ में एकदम अप -टू-डेट,
फिर चाहे वो लेटेस्ट गॉसिप हो, फ़िल्मी ज्ञान, फ़ैशन या फिर बातें. बुआ
जैसी पूरे मोहल्ले में कोई और नहीं थी, वो थी ही इतनी निराली! इधर- उधर
गप्पें हाँक कर समय बर्बाद करना उनकी विशेष हॉबी थी, जिसकी वजह से वो अक्सर
दादी से ख़ूब डाँट खाती.” कम्बख़्त सारे समय सहेलियों के साथ बातें करती
रहती है, घर के काम क्या ख़ाक सीखेगी. आने दो घर आज उसकी टाँगे तोड़ूँगी!”
हमें बहुत मज़ा आता जब बुआ को डाँट पड़ती थी. वो मज़ा हमें महंगा बहुत
पड़ता और ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ता! डाँट खाने के बाद बुआ दनदनाती हुई कमरे में आती और आते ही आवाज़ लगाती,“ पिंटू मेरे लिए एक ग्लास ठंडा पानी तो ला और फिर आ कर मेरा सिर दबाना. कुछ काम नहीं करता तू आजकल, निकम्मा कहीं का!
हैं, ये क्या? दादी का ग़ुस्सा मेरे ऊपर!
बन्नो
बुआ के मिज़ाज ही निराले थे- उनके कमरे में सिंगार मेज़ के ऊपर तरह - तरह
का समान रखा रहता था. पांड्ज़ टैल्कम पाउडर, अफ़ग़ान स्नो, पर्फ़्यूम,
चूड़ियों का डिब्बा, रंग- बिरंगी काँच के बोतलें, मेकअप का समान और ना जाने
क्या -क्या.हमें टेबल के पास जाना बिलकुल भी अलाउड नहीं था. उसके आस-पास तो हम पर भी नहीं मार सकते थे.
वो बुआ की फ़ेवरेट जगह थी और हमारे लिए नो
एंट्री ज़ोन! कभी- कभी जान जोखिम में डाल, अपनी जिज्ञासा को शांत करने के
लिए और इतने सारी इंट्रेस्टिंग वस्तुओं को देखने के लिए ग़लती से कभी उधर
कूच भी कर जाते तो बुआ की ऐसी फटकार पड़ती की क्या बताऊँ. बुआ के कमरे के
बुक शेल्फ़ में किताबें कम और फ़िल्मी मैगज़ीन ज़्यादा दिखती थी, जो वो
अपनी सहेलियों के साथ अक्सर इक्स्चेंज भी करती. दादी की नज़रे बचा बुआ कभी-
कभी अंग्रेज़ी के रोमांटिक नॉवल यानी “ मिल्ज़ एंड बून” भी पढ़ती थी.उनको
वो ब्राउन काग़ज़ चढ़ा के रखती थी ताकि सबको लगे की वो अपने कोर्स की
किताबें पढ़ रही हैं.
पर कहते है ना झूठ के पैर नहीं होते! एक दिन जब बुआ
अपनी सहेलियों के साथ बाहर गयी हुई थी दादी ने डिसाइड किया कि बुआ के कमरे
की स्प्रिंग क्लीनिंग होनी चाहिये. फिर क्या था एक- एक चीज़ निकाल कर सफ़ाई
हुई। धूल-धूसरित किताबें को तो जैसे ऑक्सिजन मिल गया हो, चप्पल, सैंडल और
जूतियाँ को भी ताज़ी हवा नसीब हो गयी. कमरे की सारी चीज़ें दादी को थैंक यू
बोल रही थी मानो! तभी दादी की तेज़ नज़र पड़ी ब्राउन पेपर चढ़ी किताबों
पर. तुरंत बोली,” ऐ कमला पकड़ा तो किताबें, ज़रा देखूँ कॉलेज में क्या पढ़
रहें हैं आजकल .”
पहली किताब आते ही दादी
के चेहरे का रंग ही बदल गया, फिर दूसरी ने इक्स्प्रेशन बदल दिया और देखते
ही देखते दादी ग़ुस्से से आग- बबूला हो गयी.” आने दो घर बन्नो को, आज ऐसी
धुलाई करूँगी याद रखेगी.यही सब पढ़ाते है कॉलेज में। कल से कोई ज़रूरत नहीं है कॉलेज जाने की !”
शाम को जब बन्नो बुआ घर पर आयी तो डाँट के बदल ऐसे गरजे और बरसे की उसके बाद बुआ ने किताबों पर कवर चढ़ना ही छोड़ दिया और बुआ की 'मिल्ज़ एंड बून' वन्स इन आ ब्लू मून हो गयी!
Nice one. Good observation.
ReplyDeleteThanks Praveen. Look forward to your comments. Encouraging and motivating.
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