मैं आपको एक बहुत ही मज़ेदार, नहीं एक दर्दनाक क़िस्सा सुनता हूँ।
वैसे तो मैं ख़ुद को बहुत बड़ा धुरंधर समझता हूँ- एक नम्बर का सूरमा.कभी -कभी तो मुझे बाहुबली के जैसे भी फ़ील होता है! छुट्टी का दिन और घर में सब काम छुट्टी वाली स्पीड से हो रहे थे।पिताजी अख़बार का आनंद ले रहे थे, माँ और दादी अपने अचार- मुरब्बे सम्भाल रहीं थी और मैं चारपाई पर लेटा हुआ आसमान को निहार रहा था.
तभी बबलू आया और बोला, " अबे जल्दी नहा ले, पतंग उड़ाने जाना है!" बस उसका यह कहना था की मानो मेरे शरीर में बिजली की एक लहर दौड़ गई हो।मैं झटपट भागा गुसलखाने की तरफ़ भागा।
गुनगुनाते हुए बालटी में पानी भरना ही शुरू करा था की, अचानक दीवार के एक कोने में वो दिखाई दी ! उसने मुझे देखा, मैंने उसे देखा- आँखें चार हुई, दिल की धड़कने बढ़ने लगी। आवाज़ तो मानो गले में ही क़ैद हो कर रह गयी।मैं थोड़ा सा शर्मसार, थोड़ा घबराया हुआ. समझ नहीं पा रहा था की क्या करूँ- मैं पीछे हुआ, तो वो आगे.मैंने अपना पेंतरा बदला। उसकी नज़र बचा के दरवाज़े की ओर सरका तो वो मेरी भी गुरु निकली- छलाँग मार कर सीधी पहुँची गयी दरवाज़े की चटकनी के पास !
काश, मैंने भी लोंग जम्प ठीक से सीखा होता तो इसे बताता।मेरी जान जैसे अटक ही गयी, लगा अब साँसे धोखा दे जाएँगी और भयानक से ख़याल आने लगे. सोचा हाथ लम्बे कर कुछ दे मारूँ इसके सिर पर! पर हाय री मेरी फूटी तक़दीर वो तो मुझसे भी ज़्यादा चौकस निकली।मेरी हर मूव्मेंट को नोटिस करती रही. ऐसा लगा कि मैं दुश्मन जहाज़ की तरह उसके रडार पर हूँ! मैंने हिम्मत करके जैसे ही अपना पैर आगे बढ़ाया तो वो पड़ा जा कर साबुन पर!मैं चारों खाने चित्त और वो सीधा मेरे ऊपर।
अपनी लम्बी-लम्बी आँठ टाँगो से उसने एक दम मस्त लैंडिंग करी! उस दिन उसका तो पता नहीं,पर मैं अपनी दो टाँगो पर ऐसे भागा की चड्डी पहनना भी भूल गया और बब्लू ने क्लास में ख़ूब मज़े ले- ले कर मेरी कहानी सबको सुनाई ।
तबसे लेकर आज तक मकड़ियों और मेरे बीच में छत्तीस का आँकड़ा है !
वैसे तो मैं ख़ुद को बहुत बड़ा धुरंधर समझता हूँ- एक नम्बर का सूरमा.कभी -कभी तो मुझे बाहुबली के जैसे भी फ़ील होता है! छुट्टी का दिन और घर में सब काम छुट्टी वाली स्पीड से हो रहे थे।पिताजी अख़बार का आनंद ले रहे थे, माँ और दादी अपने अचार- मुरब्बे सम्भाल रहीं थी और मैं चारपाई पर लेटा हुआ आसमान को निहार रहा था.
तभी बबलू आया और बोला, " अबे जल्दी नहा ले, पतंग उड़ाने जाना है!" बस उसका यह कहना था की मानो मेरे शरीर में बिजली की एक लहर दौड़ गई हो।मैं झटपट भागा गुसलखाने की तरफ़ भागा।
गुनगुनाते हुए बालटी में पानी भरना ही शुरू करा था की, अचानक दीवार के एक कोने में वो दिखाई दी ! उसने मुझे देखा, मैंने उसे देखा- आँखें चार हुई, दिल की धड़कने बढ़ने लगी। आवाज़ तो मानो गले में ही क़ैद हो कर रह गयी।मैं थोड़ा सा शर्मसार, थोड़ा घबराया हुआ. समझ नहीं पा रहा था की क्या करूँ- मैं पीछे हुआ, तो वो आगे.मैंने अपना पेंतरा बदला। उसकी नज़र बचा के दरवाज़े की ओर सरका तो वो मेरी भी गुरु निकली- छलाँग मार कर सीधी पहुँची गयी दरवाज़े की चटकनी के पास !
काश, मैंने भी लोंग जम्प ठीक से सीखा होता तो इसे बताता।मेरी जान जैसे अटक ही गयी, लगा अब साँसे धोखा दे जाएँगी और भयानक से ख़याल आने लगे. सोचा हाथ लम्बे कर कुछ दे मारूँ इसके सिर पर! पर हाय री मेरी फूटी तक़दीर वो तो मुझसे भी ज़्यादा चौकस निकली।मेरी हर मूव्मेंट को नोटिस करती रही. ऐसा लगा कि मैं दुश्मन जहाज़ की तरह उसके रडार पर हूँ! मैंने हिम्मत करके जैसे ही अपना पैर आगे बढ़ाया तो वो पड़ा जा कर साबुन पर!मैं चारों खाने चित्त और वो सीधा मेरे ऊपर।
अपनी लम्बी-लम्बी आँठ टाँगो से उसने एक दम मस्त लैंडिंग करी! उस दिन उसका तो पता नहीं,पर मैं अपनी दो टाँगो पर ऐसे भागा की चड्डी पहनना भी भूल गया और बब्लू ने क्लास में ख़ूब मज़े ले- ले कर मेरी कहानी सबको सुनाई ।
तबसे लेकर आज तक मकड़ियों और मेरे बीच में छत्तीस का आँकड़ा है !
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