बरामदे के कोने में पड़ा बेचारा- अकेला और बेहद थका हुआ. मैं उसे हर दिन स्कूल से आते - जाते देखा करता था। मुझे उस पर बहुत तरस आता था, पर मैं कर भी क्या सकता था।"मेरी तो इस घर में कोई सुनता ही नहीं है, सबसे छोटा हूँ ना! सिर्फ़ दादू की चलती है इस इतने बड़े घर में, बाक़ी तो बस उनकी आज्ञा का पालन ही करते हैं। हुँह! मुझे भी बड़ा होकर दादू ही बनना है ताकि मैं भी सब पर रौब जमा सकूँ।"
मैं बताऊँ आपको, एक ज़माने में इसके भी बड़े ठाठ होते थे। जब नया -नया आया था- एक दम शानदार और रौबदार! हर कोई इससे मिलने की फ़िराक़ में रहता था, पर मजाल है की बाबूजी किसी को इसके पास भी फटकने देते। सबको अपनी दमदार आवाज़ में डाँट कर भगा देते। उन दिनों इसकी बहुत इज़्ज़त थी- बाबूजी इसके बिना कहीं जाते नहीं थे-चाहे गरमी हो या बरसात। बड़े भैया भी कभी- कभी बाबूजी की इजाज़त लेकर इसे साथ ले जाते। अम्माँ तो बिना मंदिर नहीं जाती थी। छोटी चाची के साथ ये बाज़ार जाता था। और बन्नो बुआ तो कमाल ही थीं! जानते हैं,वो तो बाबूजी की इजाज़त के बिना ही इसे अपने साथ अक्सर शॉपिंग ले जाती।कभी पड़ोस वाले डॉक्टर शर्मा बाबूजी से पूछ कर इसे अपने साथ ले जाते थे।
मैं बताऊँ आपको, एक ज़माने में इसके भी बड़े ठाठ होते थे। जब नया -नया आया था- एक दम शानदार और रौबदार! हर कोई इससे मिलने की फ़िराक़ में रहता था, पर मजाल है की बाबूजी किसी को इसके पास भी फटकने देते। सबको अपनी दमदार आवाज़ में डाँट कर भगा देते। उन दिनों इसकी बहुत इज़्ज़त थी- बाबूजी इसके बिना कहीं जाते नहीं थे-चाहे गरमी हो या बरसात। बड़े भैया भी कभी- कभी बाबूजी की इजाज़त लेकर इसे साथ ले जाते। अम्माँ तो बिना मंदिर नहीं जाती थी। छोटी चाची के साथ ये बाज़ार जाता था। और बन्नो बुआ तो कमाल ही थीं! जानते हैं,वो तो बाबूजी की इजाज़त के बिना ही इसे अपने साथ अक्सर शॉपिंग ले जाती।कभी पड़ोस वाले डॉक्टर शर्मा बाबूजी से पूछ कर इसे अपने साथ ले जाते थे।
सबसे ज़्यादा व्यस्त रहता था ये।
फिर धीरे-धीरे वक़्त गुज़रता गया, चीज़ें बदलती गयी और हमारी ज़िंदगी में उसकी अहमियत भी कम होती चली गयी। हम बड़े हो गए, अपनी रोज़ की ज़िंदगी में इतना मशगूल हो गए की पुरानी बातों और चीज़ों के लिए वक़्त ही नहीं रहा।अब तो कोई उसकी तरफ़ देखता भी नहीं- वक़्त बदल गया और लोग भी। बहुत ही दुःख की बात है जो कल तक सबका साथी था, आज कितना दुखी और उपेक्षित है.
दादाजी का काला छाता-फटा हुआ, धूल से भरा और एक दम अकेला...
दादाजी का काला छाता-फटा हुआ, धूल से भरा और एक दम अकेला...
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