हमारी हरकतों से सारा घर परेशान था- कभी कोई बदमाशी, तो कभी कोई! हमने सब की नाक में दम कर रखा था. कुसुम चाची के ऊन के गोलों की हम रंग- बिरंगी झालर बन कर अपने कमरे में लटका लेते, तो चाची माँ से शिकायत करती, “ क़सम से जीजी, ये बच्चे एक दिन बहुत पिटने वाले हैं- कमबख़्त ना जाने कब में ऊन उठा कर भाग जाते हैं पता ही नहीं चलता है. इनका स्वेटर पूरा ही नहीं कर पा रही हूँ.” और जैसे ही माँ हमारे कमरे की तरफ़ जैसे ही बढ़ती वैसे ही हम पीछे से जा कर उनसे ख़ूब ज़ोर से लिपट जाते और उन्हें ढेर सारा प्यार करते.
“अब छोड़ो भी, बदमाशियाँ करते हो और फिर चाहते हो की मैं तुम्हें कुछ ना कहूँ. जाओ चाची से माफ़ी माँगो और उन्हें ऊन वापस क़रो. शायद मेरे पास पुरानी ऊन रखी है तुम्हें खेलने के लिए दे देती हूँ .”
सबसे ज़्यादा मज़ा आता था हमें बन्नो बुआ के कमरे में! जैसे ही बुआ दाँये- बाँए होती, हम घुस जाते उनके कमरे में और वहाँ रखे सामान का निरीक्षण- परीक्षण शुरू कर देते. मुझे बुआ की श्रिंगार मेज़ पर रखी रंग- बिरंगी बॉटल बहुत सुंदर लगती थी. उन छोटी-बड़ी काँच की बोत्तलों में से कितनी भीनी- भीनी ख़ुशबू आती थी, झट से ढक्कन हटा हम खुद को फुआरों से भिगो देते थे. “ कमबख़्तों, सब सत्यानाश कर दिया! मेरी इम्पोर्टेड पर्फ़्यूम का तो ख़त्म ही कर दी! आज आने दो भैया को तुम्हारी मरम्मत करवाऊँगी!” बुआ की डाँट से बचते- बचाते हम भाग जाते गली में अपने दोस्त मंडली के पास खेलने और मस्ती करने के लिए.
साहब! बुआ की डाँट से नहीं, पर पिताजी की कुटाई से हमें बहुत डर लगता था...
वहाँ जा के हम अपनी ख़ुराफ़ातों के क़िस्से शेयर करते और खूब हँसते- हम सब एक से बढ़कर एक थे! ऐसी- ऐसी बदमाशी करते के हमें खुद समझ नहीं आता था की हमारे अंदर इतनी क्रीएटिविटी आयी तो आयी कहाँ से!
एक क़िस्सा तो मैं आपको ज़रूर सुनाना चाहूँगा- हुआ ऐसा की माँ के बम्बई वाले मामाजी हमारे यहाँ आए, वो नानाजी हमें कुछ ख़ास पसंद नहीं थे क्योंकि वो खूब सारा खाना खाते और फिर पूरे घर में पाद मार- मार के गंदी बदबू फैलाते और सारा वातावरण दूषित कर देते. जैसे ही कोई उन्हें टोकता झट से मुकर जाते, “ भई, मेरा पेट तो बिल्कुल सही है, तुम्हारा ही ख़राब होगा. तुम ही बाज़ार में अंट- शंट खाते हो और बदबू फैलाते हो.”
एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी !
हम सब ने सोच लिया था की नानाजी को बदबू का जवाब बदबू से ही देंगे.
हमारी गली के नुक्कड़ के पास बिल्ले चाचा का घर था और उन्होंने गाय- भैंस पाली हुईं थी. आसपास की गलियों में रहने उनके यहाँ से ताज़ा दूध लिया करते थे. अब जिधर गाय- भैंस उधर फ़्रेश गोबर भी!
हम चुपके से चाचा की डेयरी के पास गए जहाँ उनकी गाय- भैंस बंधी हुई थीं और नाक बंद और साँस रोक झट से ताज़ा गोबर प्लास्टिक की थैली में भर लिया. जैसे तैसे कर उसे घर में ला कर आँगन में लगे अनार के पेड़ के पीछे छिपा दिया ताकि किसी की नज़र उस पर ना पड़े वरना लेने के देने पड़ जाएँगे. उस दिन ना जाने कितनी बार लाल वाली साबुन से हाथ रगड़-रगड़ कर धो डाले!
नानाजी ठूँस-ठूँस कर खाना खा कर सैर पर जाने की आदत थी. अब इतना ठूसेंगे तो वॉक पर जाना भी पड़ेगा ! हमारे पास यही एक मौक़ा था अपने काम को अंजाम देने का.धड़कते दिल से हम सबकी नज़रें बचाते हुए चुपके से उनके कमरे में घुस गए और परदे के पीछे से दुश्मन के इलाक़े का जायज़ा लिया। जैसे ही ऑल ओके का इशारा मिला वैसे ही चुन्नू नाक बंद कर गोबर से भरी प्लास्टिक की थैली ले आया.ये सब करना कोई आसान काम नहीं था- बंटू संतरी बन दरवाज़े पर तैनात था, बन्नू खिड़की से लगातार सब पर नज़र रखे हुए था और मन्नू और मैं इस काम को करने वाले थे- आख़िर टीम मैनज्मेंट भी तो कुछ होती है। हमने धीरे से ट्रंक खोल उसमें गोबर की थैली रखकर बंद कर दिया। काम हो जाने के बाद हम सारे वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गए.
आप सोच रहें होंगे क्या हमें यह सब करते हुए डर नहीं लगा? शायद लगा होगा पर जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना!
इतने में नानाजी की आवाज़ आयी, “ सुनिता, देख तो ज़रा ना जाने कौन कमबख़्त ये गोबर का थैला मेरे ट्रंक में रख ! सारे कपड़ों का सत्यनास कर दिया! इतनी गंदी बदबू आ रही कपड़ों से, अब सारे कपड़े कल धुलवाने पड़ेंगे. ज़रूर इन बच्चों ने ही ये बदमाशी की है- हाथ आने मेरे ख़ूब कूटूँगा इनको! ”
जैसे ही सब हमारे कमरे में आए हम ने आँख-भींच मुँह-ढक लिया और सोने का ड्रामा चालू कर दिया ताकि हम शक की रडार पर ना आएँ - नींद तो एक बहाना थी हम तो असली पिक्चर शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे. “ मुझे नहीं लगता इन बच्चों ने कुछ किया होगा, ये तो आज बहुत जल्दी सो गए थे. कल सुबह पता करते हैं की किसने किया था. कल मंगला आएगी उससे पूछूँगी, मैंने तो आपके इस्त्री किए हुए कपड़े रखने को कहा था ! ”
ये कह कर माँ सब को हमारे कमरे से बाहर ले गयी.
सुबह- सुबह जब हम उठे तो मालूम हुआ की नानाजी तारा मौसी के घर चले गए हैं और अब वहीं रहेंगे - हम तो ख़ुशी के मारे झूम उठे. इतने में माँ अंदर आयी और बोली, “ मैं सब जानती हूँ की तुमने कल क्या किया है, इस बार तो बचा लिया आगे से कोई इस तरह की हरकत मत करना वरना मुझ से बुरा कोई ना होगा! ”
हम जानते हैं माँ की आप कभी भी हमारे लिए बुरी नहीं हो सकती क्योंकि माँ तो माँ होती है- बच्चे चाहे कितनी भी ग़लतियाँ करे वो तो हर मुसीबत के सामने ढाल बन कर खड़ी हो जाती है। शायद किसी ने सच ही कहा है, “ क्योंकि भगवान हर किसी के साथ नहीं हो सकते हैं इसलिए उन्होंने माँ की रचना की है ! ”
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