Friday, April 2, 2021

मैगज़ीन की मेहरबानी

आज क्लास में कुछ ज़्यादा ही शोर-शराबा हो रहा था, ऐसा जान पड़ता था की हम मच्छी बाज़ार में खड़े हैं. हर तरफ़ से चिल्ल- पों ही सुनाई पड़ रही थी. एक तो बस लेट आयी, ऊपर से कंडक्टर अंकल की डाँट अलग पड़ी और फिर क्लास में घुसते ही ये शोर -  लगता है आज का दिन कुछ अलग ही होगा.
बैग को डेस्क पर रख जैसे ही मैं पीछे मुड़ा,तैसे ही कपिल के आवाज़ आयी, “ ओए, जल्दी आ तेरे कुछ दिखाना है .” ऐसा क्या है जिस के लिए इतना बेसब्रापन हो रहा है, कुछ समझ नहीं आया. मैंने खुद को रिवर्स गेयर में डाला ही था तभी वाइस- प्रिन्सिपल सर ने एंट्री मारी- उन्हें देखते ही सब तरफ़ सन्नाटा छा गया और अचानक से सारी क्लास एकदम सुव्यवस्थित हो गयी. हम सब अपनी सीटों पर संस्कारी, सदाचारी बालकों जैसे जा कर बैठ गए. क्लास मछली बाज़ार से बदल कर कोलाहल रहित ज़ोन में तब्दील हो गयी.


“ वेरी गुड बच्चों! बिल्कुल ऐसे ही समझदार बन आगे के दो पिरीयड्ज़ बिताने हैं. शर्मा मैडम आज नहीं आयीं हैं और उन्हें रिप्लेस करने के लिए कोई दूसरी टीचर नहीं है. इसलिए ये दो तुम्हारे फ़्री पिरीयड हैं- चुपचाप सब लोग सेल्फ़-स्टडी करेंगे .” यह सुनते ही हमारी बाँछे खिल गयी. अंधा क्या माँगे दो आँखें! आज तो यह मुहावरा सही से समझ आ गया. हमारी तो मन की मुराद पूरी हो गयी- हम तो दिल ही दिल में दुआ माँग रहे थे की कोई फ़्री पिरीयड मिल जाए तो देखें की कपिल और उसके ग्रूप के लड़के हमें क्या दिखाने के लिए बुला रहें हैं. सच में भगवान होते हैं और हम जैसे नन्हे-मुन्ने, मासूमों की बात भी सुनते हैं.


वहाँ सर ने एग्ज़िट किया, यहाँ हमारी बदमाशियों ने एंटर! सब अपनी सीटों से उठ कर इधर-उधर बिखर लिए. क्लासरूम जैसे लड़कों और लड़कियों के बीच में बँट गया था- सारी लड़कियाँ और पढ़ाकू बच्चे आगे और हमारे टाइप वाले यानी शरारती, बदमाश और शरीर बच्चों ने पीछे की सीटें सम्भाल ली थी. हमें जिज्ञासा पीछे की और खींच के ले गयी जहां हमारी क्लास के धुरन्धर बैठे हुए थे. नहीं, नहीं जिज्ञासा किसी लड़की का नाम नहीं है! हमें तो हमारी प्रबल इच्छा पीछे खींच रही थी क्योंकि हम वो सब मिस नहीं करना चाह रहे थे जिसे बाक़ी सब देखने वाले थे. “ कुछ तो है बंटी, नहीं तो ये सारे इतने उतावले नहीं होते. शायद वो छिब्बर भी कुछ लाया है, कोई मैगज़ीन मालूम होती है,” मैंने रूपक से कहा.रूपक ने पीछे देख कर इग्नोर कर दिया और झट से बोला, “ तुझे जाना है तो जा, मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है.”


तभी क्लास मॉनिटर, दीपा ने मुझे अपनी सीट पर वापिस जाने का इशारा किया. उसकी बात मानना तो ज़रूरी था वरना प्रिन्सिपल सर के पास जाने वाली लिस्ट में मेरा नाम भी जुड़ जाता.अपनी सीट पर वापिस आ कर मैंने क्लास पर नज़र डाली, जिसका आँखों देखा हाल मैं आपके साथ शेयर करता हूँ. 

चलिए आगे से शुरू करते हैं- सबसे आगे क्लास के टापर्ज़ बैठ कर डिस्कशन कर रहे थे और एक दूसरे की कठिन सम्ज़ को करने में मदद कर रहे थे. हम तो उनके लेवल तक अपने सपनों के सपनों में भी नहीं पहुँच सकते थे. वो सब तो बिल्कुल अलग ही थे- नो नॉन्सेन्स टाइप्स! इन की वजह से हमें दुनिया, समाज ! ना, ना क्लास और घर में ताने सुनने पड़ते थे. “ निकम्मों, सारा टाइम बर्बाद करते हो. पढ़ाई के नाम पर गोल अंडा! साँवली, धीरज, संजीव को देखो- सौ में सौ लाते हैं. एक तुम! पास हो जाओ तो ग़नीमत है!” मन में आते की कह दें की जान लोगे क्या बच्चे की!  अब सौ की हमारी औक़ात नहीं है. हम तो बहुत सब्रवाले हैं, पचास-साठ में खुश हो जाते हैं. पर बहुत सी बातें दिल में ही रह जाती.


थोड़ा पीछे आते हैं, कुछ है क्लास में पेंटर बाबू जिन्हें यह दो पिरीयड में मौक़ा मिल गया अपने मास्टरपीसेज़ को पूरा करने का- डेस्क पर रंग फैला कर खुद को पिकासो से कम नहीं समझ रहे थे. उनके साथ वाली सीट पर बैठी सपना, रितु और वंदना गप्पें मारने में बिज़ी तो उधर दिव्या लाइब्रेरी बुक में पूरी तरह से घुसी हुई थी. यार, इस क्लास में अजीब-अजीब से नमूने भरे पड़े हैं!आगे बैठने वाले सारे बच्चे बेहद तहज़ीबदार, पढ़ाकू और संस्कारी टाइप्स और पीछे बैठने वाले सब एक से बढ़कर एक!


इतने में दीपा को हिस्ट्री की टीचर ने क्लास के बाहर बुलाया और मेरे पास यही एक मौक़ा था पीछे जाने का. जैसे ही मैं पीछे पहुँचा तो देखा कपिल चारों तरफ़ से क्लास के लफ़ंगो से गिरा हुआ था- सब की नज़रें उसकी हाथ में पकड़ी हुई मैगज़ीन पर ही टिकी हुई थी. सब मज़े ले -ले कर देख रहे थे. मुझे देखते ही कपिल बोला, “ फटफट आ, नहीं तो बहुत कुछ मिस हो जाएगा .”  जैसे ही मेरी निगाह मैगज़ीन के खुले पन्नों पर पड़ी मेरी तो सिट्टी- पिट्टी गुम हो गयी! 

ये क्या! प्लेबॉय! अडल्ट मैगज़ीन! 

“ कहाँ से लाया इसे?” मैंने कपिल से पूछा. “ तुम आम खा, गुठलियाँ क्यों गिनता है?”, उसने मुझे से हंसते हुए कहा.
अचानक से मुझे फ़ील हुआ की मेरे पैरों तले से धरती खिसक रही है, क्लास में सब कुछ घूम रहा है- ख़ुशी और डर का काक्टेल हो गया था. तभी मेरे कंधे पे घूमते हुए उस अदृश्य शरीफ़ फ़रिश्ते ने कहा,  नीटू, ये समय सही नहीं - बेटा चुपचाप निकल ले, वरना लेने के देने पड़ जाएँगे.” मेरे आगे बढ़ते क़दम वही रुक गए और अपने दिल पर पत्थर रख मैं पीछे की तरफ़ पलट लिया. मैं चुपके से वहाँ से निकलकर अपनी सीट पर आ गया और किताब पढ़ने लगा. कपिल ने मुझे इशारा भी किया पर मैंने उसे मना कर दिया. 

सब के सब झुंड बना कर मैगज़ीन देख ही रहे थे इतने में हिंदी पढ़ाने वाले ठाकुर सिर ने एंट्री मारी. “ तुम्हारी कक्षा-संचालक कहाँ है ? और वहाँ पर क्या त्योहार मनाया जा रहा है चलिए बताइए?,” यह कहते-कहते सर कपिल की सीट पर पहुँच गए और बेचारा कपिल उसे तो मौक़ा भी ना मिला मैगज़ीन छिपाने का और खुद को बचाने का!

फिर आगे की दास्तान ना पूछे तो बेहतर होगा. कपिल और उसके साथ-साथ बाक़ी सब लड़कों की जो सुताई हुई उसका विवरण मैं ना दे पाऊँगा, ऐसा जान पड़ता था की बॉलीवुड के ऐक्शन मास्टरों ने हमारे स्कूल की इस धुलाई- सुताई प्रोग्राम से प्रेरित हो कर ही अपने आने वाली फ़िल्मों के ऐक्शन सीन तैयार करे होंगे. आख़िर कोई इन्स्परेशन भी तो होनी चाहिए! 

फिर प्रिन्सिपल रूम के दर्शन और उसके बाद वॉर्निंग लेटर!  

कपिल और उसके दोस्तों ने कभी सोचा भी ना था की उनकी लाइफ़ ही एक ओपन बुक, नहीं मैगज़ीन बन जाएगी, जिसे कोई भी पढ़ने में इंट्रेस्टेड नहीं होगा...

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर एक और दृश्य जिस से हम सबका बचपन परिचित है. जिस तरह से लिखा वो वाक़ई एकदम उसी स्कूल के उसी क्लास रूम में ले जाता है. बहुत सुन्दर प्रस्तुति बिंदु.

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