मैं आपके साथ एक बहुत ही धमाकेदार क़िस्सा शेयर करना चाहता हूँ और यक़ीन मानिये इस घटना की वजह से हमारी ज़बरदस्त मरम्मत हुई की हम को अंतरिक्ष के सारे प्लानेट्स नज़र आ गए. हुआ यूँ दिवाली के दिन थे- हर किसी के घर कहीं ना कहीं से पटाखे और मिठाइयाँ आ रहीं थी और सबसे ज़्यादा ऐश बच्चों की हो रही थी. सबके पास पटाखों का ख़ज़ाना जमा होता जा रहा था. राजू के चाचा की पटाखों की दुकान थी - तो सबसे मस्त और नये टाइप के पटाखे उसके पास थे- बड़े वाले अनार और चकरी, सतरंगी पेन्सल, सुनहरे तारों वाली फूलझडी और ना जाने क्या - क्या! अब घर की दुकान होने का कुछ तो फ़ायदा होगा. बंटू के पास रंग-बिरंगी लम्बी तार, काले बटन जिसे माचिस से जलाओ तो ये लम्बे-लम्बे काले सांप बन जाये और मोटे वाले आलू बम. सन्नी के पास हरे गोला बम और खूब सारी फूलझड़ियाँ!
हमारे पास भी पटाखों का बड़ा ख़ज़ाना था पर हम ने किसी को उसकी भनक भी ना लगने दी, वरना सबसे पहले हमारे ही पटाखे स्वाहा हो जाते! हम भी बहुत उस्तादी से एक- एक करके अपने पटाखे निकलते और मज़े ले कर चलाते. परसों जब चमन चाचाजी घर आए तो हमारे लिए रसमलाई, काजू कतली और ढेर सारे पटाखे के कर आए थे. लम्बी- लम्बी फूलझडी, जंबो चकरियाँ, मिनी अनार और मैजिकल हवाई! ये हवाई थी ही कुछ अलग टाइप की- पूँछ में आग लगा दो तो सीधे आसमान में जा कर इंद्रधनुष के रंग वाले सितारे फेंकती और पूरे पाँच मिनिट के लिए सब तरफ़ चमकीली रोशनी बिखेर देती.
हम जैसे ही उसकी की ओर अग्रसर हुए पीछे से एक आवाज़ आयी, “ ख़बरदार हवाई को हाथ मत लगाना. दूसरे पटाखे ले कर जाओ. इसे कोई बड़ा तुम्हारे लिए चलाएगा- तुम लोग इस को हैंडल ना कर पाओगे.”
यह बात हमें हज़म ना हुई- हजमोला खा कर भी नहीं!
कोई भी हम पर पाबंदी लगाए, सवाल ही नहीं उठता! अब हमारा ख़ुराफ़ाती दिमाग़ हवाई चलाने के लिए नयी-नयी तरकीबें सोचने पर आमादा हो गया.
फिर आपस में सलाह करके हम ने डिसाइड किया हमारे पास चोरी के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं है- जानते हैं चोरी करना ग़लत है पर दिवाली को और चमकदार बनाने के लिए सब कुछ जायज़ है. हमारे सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी की दुश्मन के ख़ेमे में कैसे घुसे और चोरी करें! चारों तरफ़ सख़्त पहरा - दादी, बन्नी बुआ, पिताजी, माँ और मुक्कु चाचा की नज़रों से बचना मुश्किल ही नहीं बेहद नामुमकिन भी था. पर जब हम एक बार कमिट्मेंट कर देते हैं तो अपनी भी नहीं सुनते!
सिर्फ़ हम ये अच्छे से जानते हैं की, “ हम किसी से कम नहीं!”
इक्स्क्यूज़ में! ये सिर्फ़ फ़िल्मी टाइटल नहीं हम बच्चों की सच्चाई है. अब कुछ भी करके उमे पिताजी के कमरे में जाकर हवाई का पैकेट उठाना है. सबने मिल कर ब्रेन स्टोर्मिंग की और तभी दिमाग़ का बल्ब चमक उठा- हर रावण की लंका में कोई ना कोई विभीषण होता है तो फिर हमारी लंका, ना-ना! हमारे घर का विभीषण कौन? माँ - नहीं वो तो कभी हमारी बात कभी नहीं मानेगी, गुड़िया दीदी - उफ़्फ़! एक नम्बर की चुगलख़ोर है, चिंटू भैया- ग़ुस्सा तो उनकी नाक पर रहता है, सपना चाची - ऑल इंडिया रेडिओ से ज़्यादा से ज़्यादा तो वो ख़बरें दे देती हैं! अब हम नन्हें- मुन्नों की नैया कौन पार लगाएगा ?
तभी हमने देखा की हमारी इस विकट समस्या का हल ख़ुद ही चल कर हमारे पास आ रहा है.कविता मौसी और कमल मौसाजी बरामदे में खड़े थे और सबको दिवाली की बधाई दे रहे थे.हमारे लिए मिठाई और ढेर सारे पटाखे भी लेकर आए थे और शायद इसीलिए हम उनसे मिलने के लिए हम बहुत बेताब हो रहे थे.मैं चुपके से मौसी के पास गया और उनसे रिक्वेस्ट की किसी तरह से वो हमारी मदद कर दें और हमें अपने लक्ष्य यानी हवाई के पैकेट तक पहुँच दे. अब उम्मीद पर तो दुनिया टिकी है! मौसी ने मौसाजी से कुछ कहा और वे तुरंत ही पिताजी की तरफ़ मुड़े और बोले,“ भाईजी दिवाली का असली मज़ा मिठाई से ज़्यादा तो पटाखे चलाने में है - चलिए एक बार फिर से बच्चा बन जाते हैं.” उनकी बात पिताजी कभी टाल नहीं सकते थे और हमें आवाज़ दे कर बुलाया, “ जाओ टेबल से पटाखे उठा लो, सिर्फ़ फूलझडी और अनार, रॉकट को हाथ मत लगाना.” हमने आँखों ही आँखों मेओं एक दूसरे से मेसिज इक्स्चेंज किया और आज्ञाकारी बालकों के जैसे गर्दन हिला कर जी पिताजी बोल दिया. पिताजी तो हमारी इस खुरापात की खिचड़ी से बिलकुल ही अनजान थे! हम मेज़ पर रखे पटाखे उठाने ही जा रहे, इतने में मौसाजी ने पिताजी को आवाज़ दे कर बुला लिया- यानी मैदान क्लीर! अब लम्बा हाथ मारने का टाइम था. झटपट से कुछ फूलझड़ी, चकरी, अनार के साथ दो हवाई भी उठा लीं.
सामने से माँ आती दिखाई दी तो गप्पू ने झट से अपनी क़मीज़ के अंदर हवाई छिपा ली. माँ ने गप्पू को देखा तो बोली, “ ऐसे इठला कर क्यों चल रहा है? तेरी क़मीज़ में चिटियाँ घुस गयी हैं क्या ? ” हमारे तो मुँह में मानो दही जम गया हो! तभी कविता मौसी की एंट्री हुई और माँ का हाथ पकड़ कर बोली, “ जीजी क्या तुम भी बच्चों से उलझ रही हो ? मेरे साथ चलो तुम्हें अम्माँजी बुला रहीं हैं. ”
उस समय मौसी हमें साक्षात् दुर्गा माँ का अवतार लग रहीं थी जो अपने भक्तों की रक्षा के लिए आयी थी! हमें सब आँगन लांघ के दौड़े गली में सब के संग पटाखे चलाने के लिए.
बिल्लू ने जैसे ही हमारे पटाखे देखे तो एकदम भौंचक्का हो गया- बड़ी- बड़ी फूलझड़ी और सतरंगी चकरियाँ उसके पास नहीं थी.
“हमारे पास हवाई है.तुम्हारे पास क्या है ?”
हमने झट से बच्चनजी के लहजे में सबसे पूछ डाला!इस सवाल का जवाब गली में किसी बच्चे के पास नहीं था, क्योंकि किसी को भी हवाई चलाने की इजाज़त नहीं थी. हवाई को काँच की ख़ाली बोतल में सीधा रख उसकी पूँछ में आग लगायी जाती थी- और अगर ज़रा भी टेढ़ा मेढ़ा हो जाती तो दिशाहीन हो किधर का भी रुख़ कर लेती.
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