Friday, August 16, 2024

बब्बल गम की स्टोरी

गली के नुक्कड़ पर पन्ना लाल की दुकान थी- घर से निकले और नाक की सीध में चले फिर बायें मुड़े और एक बहुत बड़ी दुकान जिस को पन्ना लाल और उसके बेटे मैनेज करते थे. पूरे मोहल्ले में सिर्फ़ ये ही एक दुकान थी जिस में इंपोर्टेड खाने- पीने का सामान मिलता था जैसे चॉकलेट, कैंडी, केक और जूस. हम सब किसी ना किसी बहाने उसकी दुकान का चक्कर लगाने को बहुत बेताब रहते थे. “ दादी, आपकी तेल की शीशी तो ख़ाली लग रही है, पन्ना लाल की दुकान पर जाकर तेल की नई बोतल का देता हूँ!” माँ के पीछे पड़ जाते,” माँ बस पाँच रुपए की तो बात है, वो नई वाली चॉकलेट लेनी है, सब बच्चे मज़े से खा रहें हैं. मुझे भी लेनी है.” “ बन्नो बुआ, आपके इतने काम करते है- सिर्फ़ दो रुपए की तो बात है. पन्ना की दुकान पर नई बबलगम आयी है, प्लीज़ जल्दी से दे दो.” किसी ना किसी से कोई बहाने पैसे निकलवा लेते और दिन भर दुकान के चक्कर लगाते रहते.


 हम ही नहीं हमारे जैसे बहुत से थे जिन्हें चैन नहीं मिलता जब तक वो दुकान के आस पास ना मँडरायें और कुछ लेकर ना आयें. “ ओये, कल मैं अपने लिये नयी बबलगम लाया था- कितने बड़े ग़ुब्बारे बन रहे थे.मज़ा गया. पता है बबलगम के दस रैपर देने पर एक चमकीली गेंद मिलती. बहुत ही मस्त है. मैं तो कल ही लेकर आया हूँ.” बँटी मुझे देखते ही बोल पड़ा. चमकीली गेंद की चमक से मेरी आँखों चौंधिया गई- पर पिताजी से पैसे माँगने की बारे में सोचते ही मेरे दिमाग़ की दही हो गई. 


बबलगम और पिताजी की पुरानी दुश्मनी है - उनके हिसाब से बबलगम निहायत ही वाहियात चीज़ है और उसे खाते हुए बच्चे खेतों में घूमती हुई गाय- बकरियों की तरह जुगाली करते हुए दिखते हैं. बबलगम तो दूर की बात है पिताजी को चूरन, लाल इमली, तीखे मिर्ची वाले चिप्स, खट्टी- मीठी गोलियाँ, आम पापड़ और दूसरी चीज़ों से भी कोई विशेष लगाव नहीं था. उनके अनुसार ये चीज़ें स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं हैं विशेषकर गले के लिए.” ज़्यादा खट्टी और तीखी चीज़ें खाने से आवाज़ बैठ जाती और फटे बांस जैसी हो जाती है.” पर पिताजी, ये शब्द हमारे गले में अटक कर इधर- उधर सटक जाते. अब चमकीली बॉल तो चाहिए ही थी पर कैसे वो हमारी समझ के बाहर था- बन्नो बुआ तो महा कंजूस उनके हाथ से तो चवन्नी भी नहीं छूटती थी, दादी को एक- दो के लिये मना सकते थे पर दस के लिए पैसे मिलना मुश्किल था, माँ को मानना सबसे आसान था तो सोचा क्यों ना माँ से आरंभ किया जाये. 

हम माँ के पीछे- पीछे रसोई में घुस गये तो हमे देख कर माँ बोली, “ कुछ चाहिए क्या? तुम लोग अपना होमवर्क कब शुरू करोगे? शाम होते ही खेलने भागोगे.” आईडिया!! “ माँ, हमें दस रुपये चाहिए, पन्नालाल की दुकान से दो कॉपी और मैप्स लाने हैं. सब कुछ मिला कर दस में जाएगा. बचे पैसे वापिस कर देंगे.” हमने बड़े भोलेपन के साथ अपनी बात माँ के समक्ष रख दी. “ ठीक है, जल्दी जाओ वरना शाम को खेलने नहीं जाने दूँगी.”


माँ की आज्ञा मिलते ही मेरे पैरों में जैसे स्प्रिंग लग गए। मन ही मन सोच रहा था, "आज तो बबलगम के ग़ुब्बारे बनाने का मौका मिलेगा और साथ में वो चमकीली गेंद भी.” मेरी चाल में उत्साह की एक अलग ही ऊर्जा थी। दिल तो कर रहा था कि सीधे पन्ना लाल की दुकान पर दौड़ जाऊँ. 

दुकान पर पहुँचकर मेरी आँखें चमक उठीं। सामने रखी विविध चॉकलेट्स, कैंडीज, और बबलगम्स की रंग-बिरंगी दुनिया देखकर मन मचल उठा. पर ध्यान रखते हुए कि मुझे कॉपी और मैप्स भी लेने हैं, मैंने जल्दी से अपनी ज़रूरत की चीजें खरीदी और फिर सबसे अंत में वो बबलगम्स. घर वापस लौटते हुए मैंने रास्ते में ही एक बबलगम खोली और चबाना शुरू कर दिया। "आज तो बड़े ग़ुब्बारे बनेंगे!" मेरे मन में उत्साह का सागर उमड़ रहा था.


घर वापस आते समय, मेरे दिल की धड़कनें तेज़ थीं। जेब में हाथ डालकर मैं बार-बार बबलगम को छूकर देख रहा था, यह सुनिश्चित करते हुए कि वह अभी भी वहीं है। घर पहुंचकर मैंने माँ को कॉपी और मैप्स दिखाए और बचे हुए पैसे भी लौटा दिए। माँ ने मुझे प्यार से देखा और मुस्कुराई।

"मुझे पता है, तुमने कुछ और भी खरीदा होगा," माँ ने कहा, उसकी आँखों में शरारती चमक के साथ.

मैं थोड़ा हकबकाया, फिर धीरे से मुस्कुराया और अपनी जेब से बबलगम निकाल कर दिखा दिया। माँ हंस पड़ीं, " मुझे पहले से पता था, बदमाश कहीं के!”


उस शाम, मैं और मेरे दोस्तों ने मिलकर खूब सारे बबलगम खाए और गुब्बारे बनाए. हमने हंसी-मज़ाक में अपनी शाम गुजारी और हर एक गुब्बारे के साथ हमारी खुशियाँ और भी फुलती गईं. वह दिन और वह शाम मेरे लिए बहुत खास रही, सिर्फ़ इसलिए कि मैंने अपनी मनपसंद चीज़ें खरीदीं, बल्कि इसलिए कि मैंने अपने परिवार और दोस्तों के साथ इन छोटी खुशियों को साझा किया. वे हंसी के पल, बबलगम के गुब्बारे, और माँ की उस नरम मुस्कान ने मेरे दिल में यह सिखाया कि खुशियाँ छोटी चीजों में भी छिपी होती हैं. जब भी मैं उस दिन के बारे में सोचता हूँ, मेरे चेहरे पर अपने आप ही एक मुस्कान जाती है.


यह एक साधारण दिन था, लेकिन उसकी यादें हमेशा मेरे दिल में खास रहेंगी, क्योंकि उस दिन मैंने सीखा कि जिंदगी की सच्ची खुशियाँ हमारे आस-पास ही होती हैं, बस उन्हें पहचानने की देर होती है और अब, जब भी मैं कभी पन्ना लाल की दुकान के पास से गुजरता हूँ, एक चमकीली गेंद और वो बबलगम की मीठी यादें मेरे साथ चलती हैं, मेरे चेहरे पर मुस्कान बिखेरती हुई.


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