Sunday, October 1, 2017

माँ

"आज मुझे कुछ स्पेशल खाना है!" मैंने स्कूल से आते ही घोषणा कर दी. माँ और दादी ने एक बार नज़र उठा कर भी नहीं देखा।दोनो अपने कामों में इतनी व्यस्त थी की उन्होंने मेरी बात भी अनसुनी कर दी।

आज मेरे साथ बहुत ही बुरा हुआ।अब क्या हुआ मैं आपको सब बताता हूँ- आज बबलू स्कूल में बहुत ही मज़ेदार खाना लाया था- सारे बच्चे उसके आस पास मक्खियों की तरह मँडरा रहे थे।डिब्बे में कचौरी,मीठी चटनी,मूँग की पकोड़ी,आलू की टिक्की और मेरा फ़ेवरेट गाजर का हलवा।इससे पहले की मैं कुछ चख पाता, टीचरजी आ गयीं और उसने डिब्बा बंद कर दिया। मुझे तो बस एक झलक ही मिली देखने को।दूसरी ब्रेक में मैंने उसे बड़े प्यार से माँगा तो उसने मुझे ज़ोर से झिड़क दिया। कितनी बेज़्ज़ती हुई मेरी!

फिर घर आ कर माँ और दादी ने मेरी बात नहीं सुनी तो मुझे और भी बुरा लगा।ऐसा महसूस हुआ की इस घर में मेरी बात की कोई वैल्यू नहीं है! ग़ुस्से में ना तो माँ से बात करी और ना ही दोपहर का खाना खाया।बस रज़ाई से मुँह ढक कर सो गया।शाम को जब आवाज़ें सुनाई दी तो अहसास हुआ की पिताजी आ गये हैं।दबे पाँव कमरे से निकला ही था की इतने में पिताजी ने आवाज़ लगाईं।तुरंत रिवर्स गेयर में ख़ुद को डाल उनके पास हाज़िरी लगाने पहुँच गया।इससे पहले पिताजी मेरी क्लास लगाते दादी ने खाने के लिए बुला लिया।

खाने की मेज़ पर आलू-पूरी,दही-भल्ले,मटर कचौरी और गाजर का हलवा मेरा इंतज़ार कर रहा था।माँ ने प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुआ कहा," इतनी छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ मत हुआ कर,चल खाना खा ले!" माँ का इतना कहना था और मेरी आँखों में आँसू आ गए।

हम बच्चे चाहे कुछ भी करे, माँ तो बस माँ ही होती है!


No comments:

Post a Comment

तेल का तमाशा

चोटियों को माँ इतना कस कर बांधती थी मानो उनकी मदद से मैंने पहाड़ चढ़ने हो- तेल से चमकती और महकती हुई इन चोटियों को काले रिबन से सजाया जाता औ...