ऐसा होता है की हमारी ज़िंदगी में कोई ना कोई बहुत ज़रूरी होता है - जिसके बिना रोज़ की ज़िंदगी भारी लगती है।बेहद अधूरी-सी रहती है और जिसके ना होने पर उसकी कमी बहुत महसूस होती है.हमें तभी पता चलता है की उसका हमारी ज़िंदगी की पिक्चर में कितना महत्वपूर्ण रोल है। अजी जनाब, अब यह क़िस्सा पढ़ कर आपको हमारे घर की सूपर स्टार के बारे में सब पता चल जाएगा।
अब कुछ ऐसा ही था - वो थी ही सबकी प्यारी। बन्नो बुआ से भी ज़्यादा सबकी लाड़ली थी ! उसका अन्दाज़ ही बिलकुल अलग था। जब पास रहती तो बस सब ख़ुश रहते थे- अम्माँ अपना कढ़ाई का काम आराम से कर पाती, बाबूजी अख़बार सुकून से पढ़ पाते, छोटी बहू अम्माँ का कोई भी काम करने से ना कतराती- बस बार-बार बड़े कमरे के चक्कर लगाती।
बच्चे भी घंटो बैठ कर साँप-सीढ़ी,लूडो,कैरम और ना जाने कौन-कौन से खेल खेलते,बड़े भैया पढ़ने के लिए कोई बहाना नहीं बनाते।पिताजी बड़े आराम से अपना सारा ऑफ़िस का काम निपटा कर ग्रामोफ़ोन पर किशोर कुमार के गीत सुनते।माँ को तो सबसे ज़्यादा सुकून मिलता- फ़ुर्सत से लेट कर सरिता की कहानियाँ पढ़ती । सब बर्फ़ वाला रूहफ़जा और घर की बनी क़ुल्फ़ी का ख़ूब मज़ा लेते! वो गरमियों के लम्बे दिन उसके होने से ज़्यादा मज़ेदार लगते.
पर जिस दिन वो ना आती तो बस,पूरे घर में कोहराम मच जाता। सब कुछ उलट-पलट जाता और ऐसा लगता मानो ज़िंदगी थम सी गई है। सब तरफ़ उसका ही नाम सुनाई पड़ता।इधर फ़ोन लगा, उधर पता करवा और कुछ नहीं समझ आता तो सीधा पहुँचना बिजली विभाग- यह जानने के लिए की आज सुबह से हमारे घर बिजली क्यों नहीं आ रही है? कब आएगी ? कहीं कोई तार तो ढीला नहीं? कितने घंटे लगेंगे? कब भेजोगे अपना आदमी ? और ना जाने कितने सवाल!
ऐसी थी बिजली की अहमियत हमारी ज़िंदगी में!
अब कुछ ऐसा ही था - वो थी ही सबकी प्यारी। बन्नो बुआ से भी ज़्यादा सबकी लाड़ली थी ! उसका अन्दाज़ ही बिलकुल अलग था। जब पास रहती तो बस सब ख़ुश रहते थे- अम्माँ अपना कढ़ाई का काम आराम से कर पाती, बाबूजी अख़बार सुकून से पढ़ पाते, छोटी बहू अम्माँ का कोई भी काम करने से ना कतराती- बस बार-बार बड़े कमरे के चक्कर लगाती।
बच्चे भी घंटो बैठ कर साँप-सीढ़ी,लूडो,कैरम और ना जाने कौन-कौन से खेल खेलते,बड़े भैया पढ़ने के लिए कोई बहाना नहीं बनाते।पिताजी बड़े आराम से अपना सारा ऑफ़िस का काम निपटा कर ग्रामोफ़ोन पर किशोर कुमार के गीत सुनते।माँ को तो सबसे ज़्यादा सुकून मिलता- फ़ुर्सत से लेट कर सरिता की कहानियाँ पढ़ती । सब बर्फ़ वाला रूहफ़जा और घर की बनी क़ुल्फ़ी का ख़ूब मज़ा लेते! वो गरमियों के लम्बे दिन उसके होने से ज़्यादा मज़ेदार लगते.
पर जिस दिन वो ना आती तो बस,पूरे घर में कोहराम मच जाता। सब कुछ उलट-पलट जाता और ऐसा लगता मानो ज़िंदगी थम सी गई है। सब तरफ़ उसका ही नाम सुनाई पड़ता।इधर फ़ोन लगा, उधर पता करवा और कुछ नहीं समझ आता तो सीधा पहुँचना बिजली विभाग- यह जानने के लिए की आज सुबह से हमारे घर बिजली क्यों नहीं आ रही है? कब आएगी ? कहीं कोई तार तो ढीला नहीं? कितने घंटे लगेंगे? कब भेजोगे अपना आदमी ? और ना जाने कितने सवाल!
ऐसी थी बिजली की अहमियत हमारी ज़िंदगी में!
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