Monday, September 25, 2017

बरसात की रात

उस रोज़ शाम से ही मौसम कुछ ख़राब था - आसमान में काले बादल थे पर बरसेंगे या नहीं कुछ कह नहीं सकते थे।

अम्माँ ने घर के आँगन में हमारे लिए कुर्सी-मेज़ लगवा दी और कहा," सब बैठ कर अपना-अपना होम्वर्क ख़त्म करो, खेल कूद बाद में !" हमारे अरमानों पर तो मानो किसी ने पानी की बालटी ही उलट दी हो। कहाँ तो हम यह सोचे बैठे थे की ठंडी-ठंडी हवा का मज़ा लेंगे, कहाँ ये पढ़ाई का फंदा हमारे गले पड़ गया। अब मरते क्या नहीं करते ! पैर पटकते हुए पढ़ने तो बैठ गए परंतु पढ़ाई से ज़्यादा हमारा दिमाग़ मौसम में लगा हुआ था।

गणित के सवाल दिमाग़ में घुस नहीं रहे थे, विज्ञान और हिंदी पढ़ने से ज़्यादा रुचि इस बात में थी कब हमें इस काम से मुक्ति मिलेगी।पर, हमारा ऐसा नसीब कहाँ! अम्माँ हमारे सिर पर बैठी हुई आलू छील रहीं थी।इस जंजाल से भागने की गुंजाइश बहुत कम दिख रही थी।हम आपस में गुपचुप बातें कर रहे थे- की आज बारिश होगी भी या नहीं और होगी तो क्या पूरी रात पानी बरसेगा?क्या कल सुबह तक बारिश होगी ? इन सवालों ने हम बहुत हैरान परेशान करा हुआ था।हम दिल ही दिल भगवान से यह माँग रहे थे, की हे प्रभु ख़ूब घमासान बारिश करना जो कल तक भी ना रुके और हमारी स्कूल की छुट्टी हो जाए।भई, हमने तो यही सुना था की बच्चे मन के सच्चे! और इसलिए हम सब पूरी शिद्दत से भगवान की चापलूसी में लगे हुए थे!


तभी अचानक से मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी - ऐसा लगता था की आज बादल हद से ज़्यादा मेहरबान हो गए हैं. मन ही मन लड्डू फूट रहे थे की भगवान ने हमारी अर्ज़ी पास कर दी और हमारी बात भी सुन ली! जय हो! सबने मंगलवार को हनुमानजी के मंदिर जाकर बूंदी के लड्डू चढ़ाने का प्रोग्राम भी बना लिया।


बादल जम के बरसे और सब तरफ़ ख़ूब पानी भर गया।घरवाले आपस में सोच विचार कर रहे थे की कल स्कूल की छुट्टी करा दी जाए. हम बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी सोने चले गयी।यह बात तो पक्की थी की हमें कल स्कूल जाने कोई दिलचसी नहीं थी ! पर हम नादान ये ना जानते थी की भगवान की मर्ज़ी कुछ और ही करने की है. अगले दिन जब हम सो कर उठे तो देखा सूरज की सुनहरी किरणें हमारे कमरे में घुस कर हमारा मज़ाक़ बना रहीं है और माँ की आवाज़ हमारे कानों का!

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