आज सुबह से माँ का मूड ऑफ़ था- शायद पिताजी और माँ की लड़ाई हुई थी या शायद दादी से कहा सुनी, या बन्नो बुआ ने तानेबाज़ी की होगी- हमारी बुआ फ़िकरेबाज़ी में ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ है! माँ से पूछने की हिम्मत नहीं हुई। सोचा, स्कूल से वापिस आ कर स्थिति का जायज़ा लेंगे और तब सोचेंगे क्या करना है, चुपचाप बिना ड्रामा किए वहाँ से निकल लिये।
दोपहर को वापिस आए तो घर पर अजीब प्रकार की शांति थी - हमें लगा आज तो कोई ना कोई बड़ा कांड हो गया है! रसोई घर में देखा, वहाँ ना तो माँ थी और ना ही दादी।बन्नो बुआ के कमरे में देखा तो वो मज़े से ख़राटे भर रही थी। अब पूछे भी तो भी किससे, कुछ समझ नहीं आ रहा था। झटपट बैग रख कर, सीधे पहुँचे माँ के कमरे में, जहाँ कोई भी नहीं था। अब हमारे दिल की धड़कने तेज़ होने लगी, सोचा पिताजी को फ़ोन करने से पहले एक बार दादी के कमरे में झाँक लें वरना डाँट पड़ जाएगी। "बेवक़ूफ़, बिना देखे ही फ़ोन लगा दिया। कितना ज़रूरी काम कर रहा था। मैंने कहा था ना माँ और दादी छत पर ही होंगी!"
कमरे में दादी किताब पढ़ रहीं थी। उन्हें देखते ही हमारी जान में जान आयी। हमने माँ के बारे में ढेरों सवाल कर डाले। दादी ने हमें देखा और बोली, "ये क्या माँ -माँ लगा रखा है। दो घड़ी भी अपनी माँ को चैन नहीं लेने देते। जैसा बाप वैसे बच्चे!" पर ये उत्तर तो हमारे प्रशन से मेल नहीं खाता था। मन तो ये हुआ की अभी बोल दे , "दादी आप तो फ़ेल हो गयीं आपको तो सही उत्तर भी नहीं पता!" फ़ालतू की डाँट खाने की इच्छा नहीं थी, बस थोड़ी सी हिम्मत जुटा कर प्यार से पूछा, "अच्छा ये तो बताओ आख़िर माँ है कहाँ पर ?
हमारा तो यह पूछना था बस सरहद पार से बमबारी शुरू हो गयी। "वो बेचारी सारे दिन काम करती है। कोई भी उसकी मदद नहीं करता है, बस सारे हुकुम चलाते रहते हो। अब तेरे बाप को ही देख ले! निकम्मा आज अपनी शादी की सालगिरह ही भूल गया। तेरी माँ के लिए ना तो कोई गिफ़्ट लाया और ना ही उसे विश करा। अब वो नाराज़ नहीं होगी तो क्या ख़ुश होगी। बस इसी वजह से आज सुबह से उसका मूड बहुत ख़राब था। अभी गयी किसी काम से बाहर, थोड़ी देर में आ जाएगी।"
ओ तेरी! तो यह मामला है। वहाँ से खिसक कर सीधे पिताजी को फ़ोन लगाया और सारी बात बताई। पिताजी शाम को जल्दी घर पहुँचे तो माँ हैरान रह गयी। थोड़ा प्यार से, थोड़ा मनुहार से पिताजी ने माँ को मना लिया और वायदा किया कि आगे से ऐसी ग़लती कभी ना करेंगे।
प्यार और अपनेपन की गरमाहट बड़ी बड़ी मुश्किलों को आसान कर देती है...
दोपहर को वापिस आए तो घर पर अजीब प्रकार की शांति थी - हमें लगा आज तो कोई ना कोई बड़ा कांड हो गया है! रसोई घर में देखा, वहाँ ना तो माँ थी और ना ही दादी।बन्नो बुआ के कमरे में देखा तो वो मज़े से ख़राटे भर रही थी। अब पूछे भी तो भी किससे, कुछ समझ नहीं आ रहा था। झटपट बैग रख कर, सीधे पहुँचे माँ के कमरे में, जहाँ कोई भी नहीं था। अब हमारे दिल की धड़कने तेज़ होने लगी, सोचा पिताजी को फ़ोन करने से पहले एक बार दादी के कमरे में झाँक लें वरना डाँट पड़ जाएगी। "बेवक़ूफ़, बिना देखे ही फ़ोन लगा दिया। कितना ज़रूरी काम कर रहा था। मैंने कहा था ना माँ और दादी छत पर ही होंगी!"
कमरे में दादी किताब पढ़ रहीं थी। उन्हें देखते ही हमारी जान में जान आयी। हमने माँ के बारे में ढेरों सवाल कर डाले। दादी ने हमें देखा और बोली, "ये क्या माँ -माँ लगा रखा है। दो घड़ी भी अपनी माँ को चैन नहीं लेने देते। जैसा बाप वैसे बच्चे!" पर ये उत्तर तो हमारे प्रशन से मेल नहीं खाता था। मन तो ये हुआ की अभी बोल दे , "दादी आप तो फ़ेल हो गयीं आपको तो सही उत्तर भी नहीं पता!" फ़ालतू की डाँट खाने की इच्छा नहीं थी, बस थोड़ी सी हिम्मत जुटा कर प्यार से पूछा, "अच्छा ये तो बताओ आख़िर माँ है कहाँ पर ?
हमारा तो यह पूछना था बस सरहद पार से बमबारी शुरू हो गयी। "वो बेचारी सारे दिन काम करती है। कोई भी उसकी मदद नहीं करता है, बस सारे हुकुम चलाते रहते हो। अब तेरे बाप को ही देख ले! निकम्मा आज अपनी शादी की सालगिरह ही भूल गया। तेरी माँ के लिए ना तो कोई गिफ़्ट लाया और ना ही उसे विश करा। अब वो नाराज़ नहीं होगी तो क्या ख़ुश होगी। बस इसी वजह से आज सुबह से उसका मूड बहुत ख़राब था। अभी गयी किसी काम से बाहर, थोड़ी देर में आ जाएगी।"
ओ तेरी! तो यह मामला है। वहाँ से खिसक कर सीधे पिताजी को फ़ोन लगाया और सारी बात बताई। पिताजी शाम को जल्दी घर पहुँचे तो माँ हैरान रह गयी। थोड़ा प्यार से, थोड़ा मनुहार से पिताजी ने माँ को मना लिया और वायदा किया कि आगे से ऐसी ग़लती कभी ना करेंगे।
प्यार और अपनेपन की गरमाहट बड़ी बड़ी मुश्किलों को आसान कर देती है...
There will be several like me who can relate to this well crafted incident.
ReplyDeleteThanks Amla. Appreciate your comment.
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