हम सब घर पर थे- लगातार बारिश हो रही थी और हम ख़ूब बोर हो रहे थे ।छुट्टी का दिन और कोई बदमाशी नहीं, ऐसा तो हमारी जनम कुंडली में लिखा ही नहीं था! पर करते भी तो क्या सारे बड़े घर पर ही थे - गुंजाईश बहुत कम थी।फिर भी हम सब मौक़े पर चौका लगाने में बहुत माहिर थे।अजी, हम थे उस्तादों के उस्ताद, कुछ ना कुछ तो करना ही था।
सब ने मिलकर अपने -अपने खुरापाती दिमाग़ पर ज़ोर डाला और सोचा, चलो छत का एक चक्कर लगा कर आते हैं।जाकर देखें आस-पास कितना पानी भरा है, सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ियाँ कैसे पानी उछाल रहीं हैं, कौन -कौन बच्चे सड़क पर खेल रहे हैं।सबकी नज़रें बचा कर, हम सब सीढ़ियों की तरफ़ भागे. धीरे-धीरे एक-एक करके हम छत पर पहुँच गए.वहाँ का नज़ारा तो एकदम मस्त था- मूसलाधार बारिश, हवा में झूमते हुए पीपल और नीम के पेड़ और जगह- जगह रुका हुआ पानी.ऐसे मौसम की मस्ती को कोई हाथ से क्यूँ जाने देता भला!
चुपके से बड़ी अम्माँ की एक तरफ़ सूखती हुई साड़ियाँ लीं और धर दी नालियों के मुँह के आगे.बस फिर क्या था बारिश का पानी बढ़ता रहा और हमारा अपना स्विमिंग पूल तैयार होता रहा. ऐसा जान पड़ता था की मानो हमारी लॉटरी लगी गयी है.उलटे-पुलटे,गिरते-पड़ते इस पूल का आनंद लेना ही शुरू करा था की इतने में बड़ी अम्माँ पता नहीं कहाँ से प्रकट हो गयीं.
फिर जो गालियों की बारिश कानों में पड़ी वो इस बारिश से भी ज़्यादा घमासान और तेज़ थी !
चुपके से बड़ी अम्माँ की एक तरफ़ सूखती हुई साड़ियाँ लीं और धर दी नालियों के मुँह के आगे.बस फिर क्या था बारिश का पानी बढ़ता रहा और हमारा अपना स्विमिंग पूल तैयार होता रहा. ऐसा जान पड़ता था की मानो हमारी लॉटरी लगी गयी है.उलटे-पुलटे,गिरते-पड़ते इस पूल का आनंद लेना ही शुरू करा था की इतने में बड़ी अम्माँ पता नहीं कहाँ से प्रकट हो गयीं.
फिर जो गालियों की बारिश कानों में पड़ी वो इस बारिश से भी ज़्यादा घमासान और तेज़ थी !
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