Friday, October 6, 2017

मेरी सहेली

मुझे उससे बेहद लगाव था। जानते हैं, वो मेरे मामाजी के साथ विदेश से आयी थी। कितनी सुंदर लग रही थी अपनी गुलाबी फ़्रॉक में! जब मामाजी ने मुझे उससे पहली बार मिलवाया था तो मेरा मन ही नहीं हुआ उसके पास से जाने का।फिर मैं उसे अपने कमरे में ले आयी और अपनी कुर्सी पर बैठा दिया। मुझे उसके साथ समय बिताना बहुत पसंद था। मैं तो उसे अपने साथ स्कूल भी ले जाना चाहती थी पर अम्माँ ने साफ़ मना कर दिया। रोज़ स्कूल से आकर उसे सारी बातें बताती, अपना होम्वर्क उसके साथ करती और यहाँ तक की बैग भी उससे बातें करते -करते ही लगाती थी।

हम दोनों हमेशा संग-संग रहते थे,उठना-बैठना,घंटो ढेरों बातें करना,कभी रूठना और मनाना,बस एक दूसरे के साथ ही रहना।मुझे उसका साथ बहुत अच्छा लगता था- क्योंकि मैं बकबक ज़्यादा करती थी और वो चुप रहती थी! "अब अगर दोनो ही बोलेंगे तो सुनेगा कौन?" इसलिए मैंने तय किया की वो चुप रहेगी और मैं बोलूँगी।उसने मेरी यह बात बिना कुछ कहे ही मान ली, आख़िर वो मेरी पक्की सहेली जो थी।

मेरी सारी बातें आराम से सुनती थी.गरमियों में मेरे साथ आँगन में लगे हुए अनार के पेड़ के नीचे खेलना, हरसिंगार के फूलों की माला बनवाना, बरसात में छोटी-छोटी काग़ज़ की कश्ती पानी में तैराना,गीली मिट्टी में चलने वाले घोंघे को घंटो बैठ कर देखना,फ़ाख्ता के घोंसले में चुपके से उसके बच्चों को झाँकना, मकड़ी के जाले में सूखे पत्ते डालना, चींटियों की लाइन को इधर-उधर जाते देखना, माचिस के डिब्बी में कॉक्रोच को बंद करना और ना जाने कितनी बदमाशियाँ मैंने उसके साथ मिलकर करी।अगर और बताऊँगी तो पता नहीं कितने पन्ने भर जाएँगे!

मेरी प्यारी गुड़िया! कैसे भूल सकती हूँ उस नीली आँखों और सुनहरे बालों वाली सुंदर सी गुड़िया को,जिसने मेरे बचपन को इतना यादगार बना दिया...

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